Farming in Seemanchal takes new turn after banana and maize youth crazy about dragon fruit makhana

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सीमांचल की किसानी करवट बदल रही है। डायवर्सिफिकेशन की दिशा में किसानों ने कदम बढ़ा दिया है। एग्री अस्मिता के तहत युवा किसान जुड़ रहे हैं जिनका डायवर्सिफिकेशन पर जोर है। इसके अलावा भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय में नित नए शोध कारगर साबित हो रहे हैं। दलहन, तिलहन, जूट, केला, मक्का के बाद किसानों में अब ड्रैगन फ्रूट और मखाना की खेती का क्रेज सिर चढ़कर बोल रहा है। मखाना बिहार की मूल फसल है। भारत के कुल मखाना उत्पादन का 85 से 90 प्रतिशत उत्पादन बिहार राज्य में ही होता है। बिहार राज्य के जलजमाव से प्रभावित क्षेत्रों के किसानों की आर्थिक एवं समाजिक समृद्धि में मखाना की महती भूमिका है। बागवानी विभाग के सर्वे के मुताबिक पूर्णिया जिले में दस हजार एकड़ भूमि में मखाना की खेती हो रही है। इधर, ड्रैगन फ्रूट को लेकर कलस्टर बनाए गए हैं। रूपौली में कलस्टर बन चुका है। बनमनखी में कलस्टर बनने वाला है। ड्रैगन फ्रूट के विस्तार को लेकर कृषि महाविद्यालय में अब अनुसंधान भी शुरू कर दिया गया है। ड्रैगर फ्रूट की खेती से 75 किसान जुड़े हैं। इसमें बीटेक उत्तीर्ण युवा भी हैं। लाखों की कमाई युवाओं को लुभा रही है। इसी तरह मखाना की खेती से पूर्णिया जिले में पांच हजार से अधिक किसान जुड़े हैं।

हवाई जहाज से आ रहा प्लांट, ड्रोन से हो रहा छिड़काव 

समय बदला तो खेती का तौर तरीका भी बदल गया। अब ड्रोन से खेतों में सिंचाई व दवा छिड़काव हो रहा है तो हवाई जहाज से प्लांट आ रहा है। पूर्णिया में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसान हैदराबाद से ड्रैगन फ्रूट का प्लांट मंगाते हैं। ड्रैगन फ्रूट की करीब 150 किस्म होती है। दमैली, रूपौली के किसान हैदराबाद से प्लांट मंगाते हैं। किसानों को ढाई लाख रुपये प्रति हेक्टेयर अनुदान भी मिलता है। जिला पदाधिकारी कुंदन कुमार कहते हैं कि एग्रीकल्चर हमारा कल्चर है।

वह शुरू से ही 80 और 20 के फार्मूले   के तहत डायवर्सिफिकेशन की बात किसानों से सांझा करते रहे हैं। उनके मुताबिक ड्रैगन फ्रूट और मखाना किसानों की तकदीर बदलने वाली है। किसानों का एक व्हाट्स एप ग्रुप भी तैयार किया है। अब एफपीओ का निर्माण होने वाला है। मखाना किसानों को एग्री फीडर से जोड़ने की कवायद भी शुरू है। एग्री अस्मिता योजना के तहत मखाना और ड्रैगन फ्रूट सीमांचल के किसानों की दशा-दिशा बदलने वाली है।

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मखाना पर वैज्ञानिकों की टीम कर रही काम

भोला पासवान शास्त्रr कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के मखाना वैज्ञानिकों की टीम पिछले 12 वर्षों से लगातार मखाना के समुचित विकास हेतु कार्य कर रही है। इस कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने के लिए 08 से 10 जून तक राष्ट्रीय स्तर पर सेमिनार का आयोजन महाविद्यालय के नवनिर्मित सभागार में किया जाएगा। सेमिनार में भारत के विभिन्न राज्यों के वैज्ञानिकों, उद्यमियों, प्रसार कार्यकर्ताओं के साथ-साथ मखाना की खेती के प्रगतिशील किसानों की सक्रिय सहभागिता होगी। मखाना की वैश्वकि स्तर पर मार्केटिंग एवं ब्रांडिग को बढ़ावा देने के लिए पूर्णिया में पहली बार सेमिनार का आयोजन हो रहा है।

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मिथिला मखाना को 2022 में मिला जीआई टैग

दुनिया में मखाना की लगभग 90 प्रतिशत आपूर्ति बिहार से होती है। खासकर कटिहार, पूर्णिया, सुपौल, सहरसा, दरभंगा, मधुबनी, मधेपुरा, अररिया, किशनगंज और सीतामढ़ी के 10 जिलों में खेती हो रही है। वर्ष 2022 में बिहार के मिथिला मखाना को भौगोलिक संकेत (जीआई- 696) टैग से सम्मानित किया गया। आधिकारिक तौर पर इसे ह्यमिथिला मखानाह्ण नाम दिया गया और इसकी अनूठी क्षेत्रीय पहचान को मान्यता दी गई।

मखाना में प्रोटीन और खनिजों की मात्रा अधिक

मखाना में वसा की मात्रा कम, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और खनिजों की मात्रा अधिक होती है। इसके बीजों को कच्चा और भूना दोनों तरह से खाया जाता है। बीजों को बाजार में बेचा जाता है और इनका उपयोग आटे के रूप में किया जाता है। बीजों के विभिन्न आहार घटकों की जांच की गई। खाने योग्य पेरीस्पर्म में 80 प्रतिशत स्टार्च होता है। कच्चे और तले हुए दोनों तरह के मखाने मैक्रो और माइक्रो-पोषक तत्वों सहित आवश्यक अमीनो एसिड और खनिजों से भरपूर होते हैं।

 

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