Bhumihar and EBC central minister Brahmin working president where is Nitish Kumar taking JDU

Bhumihar and EBC central minister Brahmin working president where is Nitish Kumar taking JDU


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में राज्यसभा सांसद संजय झा को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। नीतीश खुद जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और अब उनके बाद संजय झा दूसरे नंबर के नेता बन गए। इसके सियासी मायने भी निकाले जाने लगे हैं। चर्चा है कि पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग को केंद्र में रखकर राजनीति करने वाले सीएम नीतीश ने इस बार ब्राह्मण चेहरे पर बड़ा दांव खेला है। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश अपनी पार्टी को एक अलग स्तर पर ले जाना चाहते हैं। पिछड़ा और अति पिछड़ा के साथ वे सवर्ण जातियों को भी अपने वोटबैंक से जोड़ने की कोशिश में जुटे हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भूमिहार जाति के ललन सिंह और अति पिछड़ा समुदाय से रामनाथ ठाकुर को केंद्र में मंत्री बनाया। 

नीतीश कुमार पहले से ही कुर्मी, कोइरी, अति पिछड़ा और महिला वर्ग में लोकप्रिय हैं। कुर्मी और कोइरी को तो जेडीयू का कोर वोटर माना जाता है। अब उन्होंने दो बड़ी और प्रभावी सवर्ण जाति के ललन सिंह और संजय झा को बड़ा रोल दिया है। ललन भूमिहार और संजय ब्राह्मण जाति से आते हैं। ललन सिंह को मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाया गया, तो संजय झा को राज्यसभा में जेडीयू संसदीय दल के नेता के साथ-साथ अब पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष भी बना दिया गया। इसके अलावा एक और सवर्ण जाति राजपूत के बड़े नेता पूर्व सांसद आनंद मोहन भी नीतीश कुमार के साथ हैं। उनकी पत्नी लवली आनंद हाल ही में जेडीयू के टिकट पर शिवहर से सांसद बनी हैं। 

पिछले साल हुई जाति गणना की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में सवर्ण जातियों में ब्राह्मणों की संख्या सबसे ज्यादा है, जो कुल आबादी का 3.66 फीसदी हैं। इसके बाद राजपूत 3.45 प्रतिशत और भूमिहार 2.87 प्रतिशत हैं। जेडीयू ने आबादी के लिहाज से बिहार के सबसे बड़े वर्ग अति पिछड़ा को साधने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। इस वर्ग से आने वाले राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर को केंद्र की मोदी कैबिनेट में मंत्री बना दिया गया। रामनाथ बिहार के पूर्व सीएम एवं जननायक कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं, जिन्हें इसी साल देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। इसके अलावा सुपौल के सांसद दिलेश्वर कामैत को भी लोकसभा में जेडीयू संसदीय दल का नेता बनाया गया, जो अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं। जातिगत गणना की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 फीसदी है, जो कि सबसे ज्यादा है।

लोकसभा चुनाव के बाद जेडीयू का जोश हाई

दरअसल, बिहार में विधानसभा चुनाव अगले साल यानी 2025 में होने हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के बाद जेडीयू नेताओं का उत्साह चरम पर है। बिहार में एनडीए की सीटें भले ही घटी हैं, लेकिन जेडीयू का प्रदर्शन अपनी सहयोगी पार्टी बीजेपी से अच्छा रहा। बीजेपी ने जहां 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 पर जीत दर्ज की। वहीं, जेडीयू ने बीजेपी से एक सीट कम यानी 16 लोकसभा पर चुनाव लड़ा और उसने भी 12 पर जीत हासिल की। इस तरह नीतीश की पार्टी का स्ट्राइक रेट बीजेपी से अच्छा रहा। 

जेटली की पाठशाला में तैयार हुए संजय झा, सियासत ने बार-बार परीक्षा ली

एनडीए और महागठबंधन दोनों ही बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद नीतीश कुमार की अहमियत भी बिहार की राजनीति के लिहाज से बढ़ गई। जेडीयू के नेता तो कह रहे हैं कि बिहार में एनडीए मतलब नीतीश कुमार है। वहीं, बीजेपी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि 2025 का बिहार चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। यानी कि सीएम का चेहरा अगली बार भी नीतीश कुमार ही होंगे।

ऐसे में नीतीश कुमार जेडीयू को ए टू जेड की पार्टी बनाने में जुटे हैं। यानी कि वे हर वर्ग और हर जाति का समर्थन चाहते हैं। यही कारण है कि केंद्र में एक सवर्ण और एक ईबीसी मंत्री, संसद में एक सवर्ण और एक ईबीसी नेता का कॉम्बिनेशन रखा गया। इसके अलावा पार्टी के अंदर नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं वे खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और कोइरी जाति के उमेश सिंह कुशवाहा को बिहार का अध्यक्ष बनाया हुआ है। दोनों ही ओबीसी वर्ग से आते हैं। 

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राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार की जेडीयू आगामी बिहार चुनाव से पहले खुद को सिर्फ आरजेडी और कांग्रेस से लड़ने के लिए ही नहीं, बल्कि एनडीए के अंदर बीजेपी से ताकत का संतुलन बनाए रखने के लिए भी तैयार हो कर रही है। क्योंकि बीच में नीतीश के महागठबंधन में चले जाने के बाद से बीजेपी में कोई न कोई नेता अपने दम पर 2025 में सरकार और खुद का सीएम बनाने का राग छेड़ता रहता है। हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने भी बीजेपी को अपने दम पर विधानसभा चुनाव जीतकर सत्ता में आने का संदेश दिया। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि आगामी बिहार चुनाव में जेडीयू ज्यादा नहीं तो कम से कम बीजेपी के बराबर सीटों पर लड़ेगी, इसके लिए नीतीश पार्टी में हर वर्ग से चेहरा आगे बढ़ा रहे हैं।

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