रामविलास पासवान की जगह पशुपति पारस से ही पूरी हो सकती है, बोले जीतन राम मांझी

रामविलास पासवान की जगह पशुपति पारस से ही पूरी हो सकती है, बोले जीतन राम मांझी


यहां जीतन राम मांझी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि पशुपति कुमार पारस अस्वस्थ हैं और मुझे लगता है कि आज रामविलास पासवान की रिक्ति को पशुपाथ पारस ही भर सकते हैं।

Nishant Nandan लाइव हिन्दुस्तान, पटनाWed, 9 Oct 2024 07:01 AM
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केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने पशुपति कुमार पारस को लेकर बड़ा बयान दिया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि रामविलास पासवान की जगह पशुपति पारस से ही पूरी हो सकती है। दरअसल मंगलवार को रामविलास पासवान की पुण्यतिथि पर दिल्ली में रालोजपा के कार्यालय में जीतन राम मांझी स्वर्गीय रामविलास पासवान को श्रद्धा सुमन अर्पित करने पहुंचे थे। यहां जीतन राम मांझी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि पशुपति कुमार पारस अस्वस्थ हैं और मुझे लगता है कि आज रामविलास पासवान की रिक्ति को पशुपाथ पारस ही भर सकते हैं।

जीतन राम मांझी ने कहा, ‘जगजीवन बाबू के बाद बिहार में दलितों की आवाज उठाने वाले स्वर्गीय रामविलास पासवान रहे। राज्य की राजनीति से आकर उन्होंने केंद्र में राजनीति की। रामविलास पासवान ने दलितों के लिए राजनीति की है। फिर चाहे वो अनूसुचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण हो या फिर आरक्षण का मुद्दा रामविलास इनपर मुखर होकर बोलते रहे हैं। उनके जाने के बाद सही ऐसा लगता है कि इस कार्यक्रम में शून्यता आ गई हैै। लेकिन यह स्मृति शेष है और हम लोग उनको याद करते हैं।

पारस बाबू रामविलास पासवान की पुण्यतिथि मना रहे थे और हमको भी सूचना मिली। निश्चित है हम लोगों को रामविलास पासवान के साथ कुछ दिनों तक रहने का सानिध्य मिला। हम उनको विचारों से काफी प्रभावित हुए हैं इसीलिए हम यहां पर आए। हम यहां आकर खुश हैं। पशुपति पारस थोड़ा अस्वस्थ हैं लेकिन उनके परिवार वालों से मिलकर काफी सुखद एहसास हुआ है। ऐसा लगा कि रामविलास बाबू तो चले गए हैं लेकिन उनके स्वरूप पारस बाबू हैं। हम लोगों को आशा है कि पारस बाबू से रामविलास पासवान की जो रिक्ति है शायद उसे पूरा किया जा सके।’

इसी के साथ केंद्रीय मंत्री ने रामविलास पासवान के जाने के बाद परिवार में आए टूट पर भी अपनी बात रखी और सलाह दी कि सभी को एकजुट होकर रहना चाहिए। जीतन राम मांझी ने कहा, ‘हम तो यही चाहेंगे कि परिवार में कही ना कही थोड़ा सा खटपट होती रहती है लेकिन समाज को अगर करना है और देश के प्रति अगर सोचना है तो ऐसी स्थिति में अगर मन में थोड़ी सी ऐसी भावना है तो जो राजनेता है उसको आत्मसात कर आपस में मिलकर काम करना चाहिए। ऐसा नहीं करने से दोनों को घाटा होगा और उससे ज्यादा समाज को घाटा होगा। हम जरूर कहना चाहेंगे कि यह पारिवारिक कलह घर तक ही रहे बाहर ना निकले।’

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