छोटा पौधा, कम खर्च और अधिक उपज, यूपी समेत पांच राज्यों में उपजेगा बिहार का यह धान

छोटा पौधा, कम खर्च और अधिक उपज, यूपी समेत पांच राज्यों में उपजेगा बिहार का यह धान


धान की इस नई प्रभेद की खोज बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की है। वनस्पति अनुसंधान इकाई धनगई बिक्रमगंज के वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश सिंह और उनकी टीम ने धान की इस प्रभेद की खोज, अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना के तहत की है।

जलवायु परिवर्तन से होने वाले मौसम की मार झेलने में कारगर है सबौर विजय धान। बिना रोपनी सीधी बुआई में भी धान की नई वेराइटी (प्रभेद) सबौर विजय 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देगा। रोपनी विधि में उत्पादन 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलेगा। कम पानी, उर्वरक और कम खर्च में सामान्य धान की तुलना में सबौर विजय 35 प्रतिशत अधिक उत्पादन देगा। मध्यम अवधि 125 से 135 दिनों में यह तैयार हो जाता है।

केंद्रीय प्रभेद चयन समिति ने पांच राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के लिए इस बीज का चयन किया है। इन पांच राज्यों में इस धान का उत्पादन बेहतर होगा। पौधे छोटे एवं कम अवधि में होने से पुआल जलाने की समस्या भी कम करने में यह मदद करेगा। इस साल इस वेराइटी के अधिक बीज तैयार किए जा रहे हैं। अगले साल बीज किसानों को आसानी से मिलेंगे।

धान की इस नई प्रभेद की खोज बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की है। वनस्पति अनुसंधान इकाई धनगई बिक्रमगंज के वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश सिंह और उनकी टीम ने धान की इस प्रभेद की खोज, अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना के तहत की है। पिछले तीन वर्षों से बिहार सहित देश के 12 राज्यों में परीक्षण किया गया। बिहार में इसका परीक्षण किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा, भागलपुर, लखीसराय, समस्तीपुर, बेगूसराय, पटना, नालंदा, औरंगाबाद, गया, कैमूर, रोहतास, बक्सर और भोजपुर में किया गया। जांच में वैज्ञानिकों ने बेहतर परिणाम पाया। परीक्षण के आधार पर ही केंद्रीय प्रभेद चयन समिति, कृषि विभाग, भारत सरकार से अनुशंसा मिली।

105 सेंटीमीटर होती है पौधे की लंबाई

इसके पौधे की लंबाई 100 से 105 सेंटीमीटर है। प्रति पौधे 18-20 कल्ले निकलते हैं, जिनमें 28 से 30 सेंटीमीटर लंबी बालियां होती हैं। हर बाली में दानों की संख्या 290 से 450 तक होती है। सबौर विजय धान के 1000 दानों का वजन 21 से 22 ग्राम होता है। इसके दाने का रंग सुनहरा, मंसूरी और स्वर्णा जैसा होता है।

कीट एवं प्रतिरोधक क्षमता अधिक

इस प्रभेद में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है। कण्डदुआ, जीवाणु झुलसा, अच्छद अंगमारी, गलका एवं झोंका रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। तना छेदक, भूरा कीट-बीएचपी एवं पत्ती लपेटक के प्रति सहनशील है।

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